29 December, 2015

गीत : नया साल-नये संकल्प

Happy New Year 2016

 **** नया साल-नये संकल्प ****


एक बरस फिर से बीता है, नया बरस अब आयेगा
हम सबकी जीवन बगिया में, खुशियाँ भर के लायेगा
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आओं मिलकर हम प्रण कर लें, नये साल के स्वागत पर,
महंगाई पर कसे शिकंजा, बढी हुई हर लागत पर,
बच्चे भूखे रह न पाये, नारी को सम्मान मिले,
खुशियाँ सदा सदा ही बरसे, हर घर में धन धान मिले,
अंधियारा छँट जायेगा अब, उजियारा भी छायेगा,
नया बरस जीवन बगिया में, खुशियाँ भर के लायेगा,
एक बरस फिर से बीता है........
हम सबकी जीवन बगिया में.......
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दहेज की खातिर कोई भी, बेटी अब मरने न पाये,
चौराहों पर नंगा भूखा, कोई रहने न पाये,
जात पात मजहब के झगडे, कहीं नहीं अब खून बहे,
गौ हत्यारों को फाँसी हो, ऐसा भी कानून रहे,
हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, जय जयकार लगायेगा,
नया बरस जीवन बगिया में, खुशियाँ भर के लायेगा,
एक बरस फिर से बीता है........
हम सबकी जीवन बगिया में.......
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स्वस्थ रहे हम, स्वच्छ रहे सब, स्वच्छ हमारा देश रहे,
हरा भरा माहौल रहे अब, हरा भरा परिवेश रहे,
पॉलीथिन की थैली को भी, हम समाज से दूर करे,
दुनिया भर में चमकेगा फिर, देश को कोहिनूर करे,
डिजिटल इंडिया मेक इन इंडिया, प्रगति लेकर आयेगा,
नया बरस जीवन बगिया में, खुशियाँ भर के लायेगा,
एक बरस फिर से बीता है........
हम सबकी जीवन बगिया में.......
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Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
ओज कवि (राष्ट्र चिंतन)
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

Happy New Year 2016

23 December, 2015

हास्य कविता: मज़ा ले लो ठण्ड का

India Winter Cold Sardi

ठण्ड तो महज़ एक बहाना है,
बात ये है कि हमें नहीं नहाना है,

अपनी पीड़ा दुसरो को क्यों सौंपते हो
खुद की कमज़ोरी ठण्ड पे क्यों थोपते हो,

भला मानो ठण्ड का जो इतनी पड़ रही
वर्ना आठ महीने से रजाई पड़ी पड़ी सड़ रही,

कहाँ मिलेगा मज़ा रजाई में सोने का
पानी को दूर से ही देख मुंह धोने का,

गर ठण्ड न होती तो अभी बादल बरसते
या गर्मी में हम तुम सब तपते ही तपते,

इसलिए कहता हूँ मज़ा ले लो ठण्ड का
ज्ञान दे रहा हूँ सबको मैं ये फ्री फण्ड का


Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

21 December, 2015

ग़ज़ल : भारती का भाल झुकता, हम यहां क्या कर रहे



Hind Bharat Bhagat India


पंख से केवल परिंदा, दूर तक उडता नहीं
हौंसला भी चाहिये फिर, वो कभी रूकता नहीं ।१।

आज आओ हम करे प्रण, चल पडे उस राह पर,
क्रांतिकारी राह कोई, क्यों भला चुनता नहीं ।२।

भारती का भाल झुकता, हम यहां क्या कर रहे,
क्यों भगत सा वीर अब तो, देश ये जन'ता नहीं ।३।

जब तलक गद्दार नेता, राज करते ही रहे,
दे रहा इतिहास ताने, भूल वो सकता नहीं ।४।

'हिन्द' की सुन लो कही ये, फिर नहीं दोहरायेगा,
बात करने भर से ही तो, हल निकल सकता नहीं ।५।

Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

17 December, 2015

ग़ज़ल : इसलिये ही नाम तेरा, गुनगुनाना हो गया

Love Gazal Ishq Ghazal


आपकी आवाज़ सुनके, इक ज़माना हो गया
जिंदगी का देख मकसद, गीत गाना हो गया ।१।

प्यार की बातें करी थी, आज भी वो याद है,
तीर जो नजरों से छोडा, मैं निशाना हो गया ।२।

गीत जो गाये कभी थे, याद अब भी है मुझे,
आपकी आवाज सुनकर, ही दिवाना हो गया ।३।

सांस ने ये शर्त रख दी, जिंदगी जीना है गर,
इसलिये ही नाम तेरा, गुनगुनाना हो गया ।४।

कौन देता है दुआयें, हम नहीं ये जानते,
आजकल लोगो का मकसद, धन कमाना हो गया ।५।

Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

09 December, 2015

घनाक्षरी | देश मेरा देखो किस राह पे चला गया

Ram Rahim Hind Desh Bharat


एक युग ऐसा भी था, मंदिर में रहीम था,
और वहीं राम ईद-गाह पे चला गया

बंटा मेरा देश फिर, बने नेहरू वजीर,
गाँधी जिन्ना वाले शहंशाह पे चला गया

फिर नहीं दिन फिरे, नेताओं से हम घिरे,
लाव लशकर वाली चाह पे चला गया

लालच में फंसकर, गर्त में ही धँसकर,
देश मेरा देखो किस राह पे चला गया


-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

04 December, 2015

हिंदी हिंदू हिंदुस्तान । घनाक्षरी


Hindi Hindu Hindustan Hind

हिंदी मेरी आन है जी, हिंदी मेरी शान है जी,
        हिंदी से ही तो ये मेरी, कविता में जान हैं

हिंदू हूं मैं जात का भी, ज्ञान इस बात का भी,
        हिंदू ही तो सदा मेरा, धरम ईमान है

हिंदुस्तान मेरी जान, सारी दुनिया की शान,
        सभी धर्म जात भाषा, यहाँ तो समान हैं

सब मिल भरो तान, राष्ट्रगीत राष्ट्रगान,
        हिंदी हिंदू हिंदुस्तान, जगत की शान हैं

-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

27 November, 2015

कविता चोर | छंद




कविता के मंच पर, चोर देखो आ गये है
दूसरो की कविता को, अपनी बताते है

रोला दोहा सोरठा में, अंतर भी नहीं पता
और बडी बडी देखो, डिंगे हाँक जाते है

हम लिखे रात भर, जाने क्या क्या सोचकर
चोर देखो हमारी ही, कवितायें गाते है

लगता है हमको तो, बस अब इतना ही
जन्म देने वाली माँ की, कोख को लजाते है


-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

19 November, 2015

झाँसी की रानी-वीरांगना लक्ष्मीबाई | घनाक्षरी छंद




पतिदेव देखो जब, स्वर्ग को सिधारे तब
सामने बडा ही देखा, दृश्य विकराल था

एक ओर देखा खड़ी , सेना शत्रु पक्ष बडी,
दूजी ओर भारती का, भाल लाल लाल था

बेटा पीठ बाँध कर, प्रण रण धार कर,
तोड़ने को चल पडी, जो बनाया जाल था

अंत में थी जब चली, और चिता में थी जली,
काँप रहा थर थर, जिसे देख काल था

-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

17 November, 2015

कविता | विरोध के स्वर- नेहरू जयंती

~~~विरोध के स्वर~~~



 ~~~विरोध के स्वर~~~

मुझे माफ़ कर देना मित्रों, मैं नहीं कह पाऊँगा
दामन पे जो दाग लगा हैं, मैं नहीं सह पाऊँगा
कभी राष्ट्र के गीत सुनाये, आज बगावत गाऊंगा
पर बगावत करके भी मैं, राष्ट्रधर्म निभाऊंगा

कैसे कह दूँ उनको चाचा, जिसने बांटा भाई को,
खींची लकीरे सरहद की, काटा भारत माई को,

गाँधी के अनुदान से देखो, जो पहले प्रधान बने
लौहपुरुष को पीछे रख कर, भारत का सम्मान बने

आज जयंती उनकी पूरा, भारत देश मनाता है
ग़ाज़ी के वंशज थे जो, बहुत पुराना नाता है

गर कोई मुझको झुठला दे, मंच छोड़कर जाऊँगा
आज कसम खाता हूँ ये, गीत नहीं दोहराऊंगा


-हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर(म. प्र.)

दिनांक १४ नवम्बर २०१४

09 October, 2015

ग़ज़ल : ग़ज़ल अशफ़ाक़ की भी अब, यहाँ पर तिलमिलाती हैं


Bhagat Azad Bismil Ashfaq

गरीबी तो ज़रा देखो, यहाँ क्या दिन दिखाती हैं
जनम जिसने दिया वो माँ, ही बेटी बेच जाती हैं ।१।

निवाला छोड़ देते है, अमीरों का बडप्पन है,
गरीबी उस निवाले से, कहीं खाना खिलाती हैं ।२।

शरीफों ने बिगाड़ा हैं, यहाँ आबो-हवाओं को,
धरम की राजनीती भी, यहाँ लाशें बिछाती हैं ।३।

शरम करते कहीं होंगे, भगत-आज़ाद-बिस्मिल जी,
ग़ज़ल अशफ़ाक़ की भी अब, यहाँ पर तिलमिलाती हैं ।४।

इसी दिन के लिए ही क्या, वतन पर जान हमनें दी?
शहीदों की चिताओं से, सुनों आवाज़ आती हैं ।५।

भला कैसे छुपाएं टीस उठती 'हिन्द' के दिल में,
कलम जब भी उठाता हूं, नज़र आँसूं बहाती है ।६।


-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

06 October, 2015

गीतिका : सीता सावित्री की भूमि पर, नारियों का सम्मान कहाँ हैं

एक सवाल…


Gang-Rape Banglore Bengluru Delhi Mumbai Metro City


हवस भरी निगाहें चहुंओर, इससे भी बड़ा अपमान कहाँ हैं, 
सीता सावित्री की भूमि पर, नारियों का सम्मान कहाँ हैं, 

द्रौपदी की इज्ज़त तो, फिर भी बच गयी थी द्वापरयुग में, 
इस कलयुग में हैं मुश्किल, जाकर ढूंढो कि भगवान कहाँ हैं 

जन्म लेने से पहले ही, बन जाती हैं ओछी सोच का हिस्सा, 
इस दुनिया में लाने का, हर दिल में अरमान कहाँ हैं, 

कुछ तो गलती हैं अपनी भी, जो चुप बैठे रहते हैं, 
बलात्कारियों को हो फाँसी, कुछ ऐसा फरमान कहाँ हैं, 

अँग्रेजी पाश्चात्यता के पीछे, दौड़ने वालों ये भी देखो, 
रानी लक्ष्मीबाई और पद्मिनी, वाला हिंदुस्तान कहाँ हैं..... 

Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

01 October, 2015

छंद : जब बने थे प्रधान, घायल था हिंदुस्तान

Lal Bahadur Shashtri Jayanti

    छोटी सी थी कद काठी, सदा पहने थे खादी,
             'मरो या मारो' को वो पुकारते चले गए

     किसानो के साथ साथ, जवानो की जय वाला
             नारा सुन  दुश्मन भी  हारते चले गए

     जब बने थे प्रधान, घायल था  हिंदुस्तान
             भारत माता को वो संवारते चले गए

     सीमा पार का जवाब, बंदूको  से  देते रहे
             शत्रुओं का पानी वो उतारते चले गए

                          -हिमांशु भावसार 'हिन्द'
                            झाबुआ-इंदौर(म.प्र.)
                            +91-8827089894

Lal Bahadur Shashtri Poem

25 September, 2015

कविता : मैं नेताओं पर नहीं लिखता




 मैं नेताओं पर नहीं लिखता

लोग पूछते है मुझसे,
मैं नेताओं पर क्यों नहीं लिखता,
मैं बस इसलिये नहीं लिखता,
क्यूंकि,
मेरा ज़मीर चंद कागज के टुकडों में नहीं बिकता
क्या लिखूं मैं इन भ्रष्ट नेताओं पर,
जिन्हें भारत माता का दुखों में डूबा हुआ चेहरा नहीं दिखता

आज देश में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को काट रहे है
और ये भ्रष्ट नेता सेंक रहे वोटों की रोटियाँ, और आपस में बाँट रहे है
देशभक्ति की बातें करने वालों को ये लोग डाँट रहे है
दिल्ली जाकर कुर्सी के तलवे चाँट रहे है

बात चली जब नेताओं की, तो ये दिल दुखों से भर आता है
और आँसूं भरी आँखों के सामने बस एक ही नाम नजर आता है

कि नेता तो था वो वीर सुभाष,
जिसने कहा मैं और न कुछ लूंगा
तुम बस मुझे खून दो,
मैं तुम्हे.........

और आज देश में कोई भी नेता, 
मुझे वीर सुभाष जैसा नहीं दिखता,
बस यही एक कारण है, कि
मैं नेताओं पर नहीं लिखता
मैं नेताओं पर नहीं लिखता

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)

21 September, 2015

गीत : गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

Cow Nepal National Animal Hindu India

गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे

दूध पीते रहे, श्याम जी तो यहाँ
यज्ञ करते रहे, राम जी तो यहाँ
घास खाती सदा, दूध देती रहूं
इक यहीं बात को, लो सुनो मैं कहूं
गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे ।१।


गैस गोबर बने, ख़ाद बनती रहे
पेट भरता रहे, आय होती रहे
फिर भला क्यों मुझे, मारते तुम रहे
फिर भला क्यों मुझे, काटते तुम रहे
कामधेनू बनूं, तुम सभी के लिये
दर्द सारे सहूं, जो भी तुमने दिये ।२।

गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)

18 September, 2015

ग़ज़ल : सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

government india army tiranga border


देश की सीमा पुकारे,वीर घबराना नहीं ।।
सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं ।१।

शौर्य का अनमोल गहना,देश ने तुमको दिया,
कर्ज इसका तुम चुकाना,वीर कतराना नहीं ।२।

तन समर्पित मन समर्पित, जान भी दूंगा मगर,
शर्त इतनी आँख कोई अश्क़ भर लाना नहीं ।३।

ओढ कर के तुम तिरंगा,ग़र यहाँ आये सजन,
इस कदर तुम बेरूखी से, रूठकर जाना नहीं ।४।

भारती के लाल को ये, 'हिन्द' करता है नमन,
याद रखना ऐ सियासत,भेद करवाना नहीं ।५।


हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

15 September, 2015

ग़ज़ल : किसानों ने हमेशा ही, हमारा पेट पाला है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


Jay Jawan Jay Kisan Himanshu Bhawsar


ज़मीं को चीर कर देखों, दिया हमको निवाला है,
किसानों ने हमेशा ही, हमारा पेट पाला है ।१।

हमारा पेट भरने को, सुबह से खेत पर जाता, 
अँधेरों में रहे वह तो, हमारे घर उजाला है ।२।

ठिठुरती ठंड हो चाहे, भले तपती दुपहरी हो,
भरी बारिश में भी उसने, धरा में बीज डाला है ।३।

लगाया जय जवानों जय किसानों का ही नारा था,
वहाँ दुश्मन भगाये तो, यहाँ जीवन को ढाला है ।४।

सिपाही ने बचाई देश की सीमा नमन उनको, 
किसानों ने अनाजों से, यहाँ हमको संभाला है ।५।

नहीं दिखता मुझे कोई, किसे ये 'हिन्द' बतलाये,
जवानी से बुढापा खेत में उसने निकाला है ।६।

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

11 September, 2015

छंद : भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती

छंद : भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती


Bholenath Tandav Himanshu Bharat Mata Neta


नेताजी मचान पर, तीर था कमान पर,
        मानवता तिल तिल, देखो कैसे मरती,
एक की तो मौत से भी, देखो पेट नहीं भरा,
        नर्मदा की आँखे अब, झर झर झरती,

देखो कैसी राजनीति, कर रहे नेतागण,
        देखो भारत माता भी, रुदन है करती

एक दिन में ही देखो, सबक है मिल गया
        भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' | इंदौर

04 September, 2015

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'



Kavi Himanshu Bhawsar Hind Kavita Khandhar Love Indore

आज फिर एक सदी के बाद
पहुंचा उस जगह
जहां कभी मिला करते थे हम

आज भी उन दीवारों पर
गुदा हुआ मिला तेरा नाम 

मेरे नाम के साथ

दीवारों का स्पर्श जैसे 

आज फिर तुझे छू लिया मैंने

साँय साँय करती हवा आज फिर लगी
जैसे कानों में तुम धीरे से करती थी 

मोहब्बत का इज़हार

कल तक महज़ ये सब 

कागज़ी बाते लगती थी
आज महसूस हुआ कि

"खंडहर बोलते हैं"


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

इंदौर (म. प्र.)


01 September, 2015

छंद-कविता : भारत माँ के नेत्र सजल हैं, कैसे मैं श्रृंगार लिखूं

रचनाकार : हिमांशु भावसार "हिन्द"

Kavita India Bharat Himanshu Bhawsar

मैं भी लिख सकता था तुम पर, प्रेम प्रणय के गीतों को,
मैं भी लिख सकता था भर लूँ,  बारिशों के छींटों को,
मैं भी लिख सकता था पी संग, गुजरी उन सब रातों को,
मैं भी लिख सकता था वो सब, बासंती जज़्बातों को,

मैंने भी चाहा था लिखना, प्रेम प्रीति की बातों को,
मैंने भी चाहा था लिखना, उन सब रिश्ते नातों को,

पर मैं भारत का बेटा हूँ, कैसे आँखें मूँदूँ मैं,
देश जले जब मेरा तो, श्रृंगार कहाँ से ढूँढूँ मैं,

देश में फ़ैली हैं जब नफ़रत, कैसे तुझ संग प्यार लिखूं,
भारत माँ के नेत्र सजल हैं, कैसे मैं श्रृंगार लिखूं 

रचनाकार : हिमांशु भावसार "हिन्द"

इंदौर (म. प्र.)

28 August, 2015

छंद : गर्भ में ही मार कर, पाप मत कीजिये

मातृ शक्ति को नमन करते हुये बेटियों पर चार पंक्तियाँ 

Beti Bachao Indore Himanshu Bhawsar India

देवियों की अवतार, होती है तो बेटियों को,
गर्भ में ही मार कर, पाप मत कीजिये

कन्यादान महादान, होता आया जग में तो,
बेटियों के खून वाला, घूँट मत पीजिये

बेटियाँ पढाओ और, बेटियाँ बचाओं वाला,
जन-जन अब यह, पुण्य काम कीजिये

करता हूँ आहवान, बच जाये हर प्राण,
गर्भ में न बेटियों का, खून होने दीजिये

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

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26 August, 2015

आरक्षण : फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

इंदौर (म. प्र.)

Aarakshan Hatao India Indore Himanshu Bhawsar Hind
फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में,
लेकर देखो खड़े हुए हैं, भीख की थाली भारत में,
आपस में ही लड़ रहे हैं, सुग्रीव बाली भारत में,
दिल्ली वाले बजा रहे हैं, देखो ताली भारत में,

जात-पाँत के नाम पर टुकड़े, सैंतालिस में कर डाले,
बंटवारे के समय से अब तक, ये है सियासत की चालें,

अभी तलक गुर्जर थे देखो, अब आये गुजराती हैं,
भारत माता की छाती भी, पीड़ा से भर आती हैं,

हमनें भी चाहा था फिर से, कोई पटेल सा आ जाये,
भाई-चारे और एकता का, गीत अनोखा गा जाये,

पर आरक्षण की आंधी ने ये, खेल अनोखा खेला हैं,
भारत माता ने दामन पर, दाग ये कैसा झेला हैं,

आज नहीं लगते हैं वो तो, वंशज कोई पटेल के,
अपनों के दुश्मन बन बैठे, वो तो खूनी खेल के,

तेरह बरस तक मोदी ने, बाग़ के जैसे सींचा था,
बना दिया गुजरात को जिसने, फूलों का बगीचा था,
 
तेरह घंटों में ही देखो, जल रहा गुजरात हैं,
जयचंदों के हाथों ही होता, आया यहाँ आघात हैं,

खुद को कहता है ये हार्दिक, उसकी सोच पटेल सी,
हमको तो लगती हैं चालें, ये तो सियासी खेल सी,

अरे पटेल की सोच कभी भी, इतनी ओछी नहीं थी जी, 
एक सूत्र में रखने वाली, उनकी सोच रही थी जी,

तुम जाति के नाम पर अब तो, देश बांटने आये हो,
देश के गद्दारों के मन को, तुम बहुत ही भाये हो,

तुम कहते हो जातिवाद का, शुरू वहां आरक्षण हो,
'हिन्द' यहाँ पर कहता देश में, योग्यता का शासन हो.


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म. प्र.)

21 August, 2015

कुण्डलियॉं: वर्तमान सरकार, लग रही है हम सबकी

कुण्डलियॉं

सबकी अपनी ताल है, सबका अपना साज़ ।
रजनीचर के राज में, उल्लू के सर ताज़ ।।

उल्लू के सर ताज़, कोई तो अब बचाये,
कैसी कैसी बात, राहुल बाबा बताये,

कहे 'हिन्द' कविराय, बात करता हूं अबकी,
वर्तमान सरकार, लग रही है हम सबकी ।

रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर

18 August, 2015

छंद : झॉंसी वाली रानी जैसी, वीरता सिखाईये



मातृ शक्ति को नमन करते हुए बेटियों पर एक छंद निवेदित करता हूं


Jhansi Beti Bachao Himanshu Bhawsar Indore

बेटियॉं हमारा कल, देती शुभ कर्म फल,
        बेटियों को कोख में तो, ऐसे न मिटाईये

घरो को संभालती है, उसको सँवारती है,
        बगिया की कलियॉं है, इनको सजाईये

गर डरते हो सोच, भेडिये खायेंगे नोच,
        भीत भरी भावना को, मन से भगाईये

कर सके आत्मरक्षा, दे दो उन्हें शस्त्र शिक्षा,
        झॉंसी वाली रानी जैसी, वीरता सिखाईये


रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

17 August, 2015

कविता : भारत मॉं की रक्षा हेतु, फौजी फिर वापस आया है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


राहों को तकती ये नजर
क्या पता शायद,
आ जाये फिर कोई सहर

बीती यादों की
फटी पुरानी दुशाला ओढ़े

पथरीली आँखों से अविरल
झर झर झर झर बहता झरना

पिछली दिवाली जब वो आया था
पूरे गॉंव ने मिलकर त्यौहार मनाया था

वादा करके गया वो वापस
कि होली पर फिर आयेगा
सबको रंग लगायेगा

आधा वादा किया उसने पूरा
आया होली पर
पर तीन रंगों की धानी चुनर में लिपटकर

फागुन में देखा जब 
नैनों से बहता सावन
होलिका की अग्नि में
दहकता हुआ तन मन

जैसे अब बस यादें ही बची हो
पर नियति कुछ और कहती हो

एक बीज,
जो बोकर गया था वो दिवाली पर,
अब फल मिलने वाला है
उस फौजी का बेटा,
इस दुनिया में आने वाला है

भारत मॉं की रक्षा हेतु,
फौजी फिर वापस आया है,
सावन की बूंदों ने भी,
गीत अनोखा गाया है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर ( म. प्र.)

15 August, 2015

दोहे : भारत की गाथा लिखूं, बढती जाये पीर ।।

India Bharat Hind Doheहिन्द के दोहे


लिखने को दोहे अभी, मैं भी हुआ अधीर ।
भारत की गाथा लिखूं, बढती जाये पीर ।।

गॉंधी नेहरु लिख गये, कैसी ये तकदीर ।
जो देखूं इतिहास को, बढती जाये पीर ।।

कभी हुए आजाद से, भगतसिंह से वीर ।
आज हनी सिंह छा गया, बढती जाये पीर ।।

देख सको तो देख लो, भारत की तस्वीर ।
कहता है ये 'हिन्द' यहॉं, बढती जाये पीर ।।

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

13 August, 2015

छंद : यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है


Bharat India Tiranga Flag Himanshu Bhawsar Hind

भारत माता का हर बेटा, मस्ती में अब झूम रहा है,
यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है।।

यूं ही नहीं मिली आज़ादी, कीमत बड़ी ही चुकाई थी
अमर शहीदों ने मिलकर के, लड़ी बहुत यहाँ लड़ाई थी

आज ज़रूरत आन पड़ी है, फिर से देश बचाना होगा
देशद्रोहियों आतंकियों को, फिर से सबक सिखाना होगा

नेताओं के आगे पीछे, घटनाक्रम अब घूम रहा है।
यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है।।



Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

10 August, 2015

छंद मुक्त : यहॉं बस्तियॉं जलती रहती है रात-दिन

देश की वर्तमान स्थिति पर एक रचना

Azad Bhagat Bharat India

सिसकती मॉं भारती, रहती है रात-दिन,
अपनों के हाथों हारती, रहती है रात-दिन,
जी में आता है धर लूं, रूप भगत-आज़ाद का,
जीने की चाह मारती, रहती है रात-दिन ।

सांसे रोज मेरी मुझसे, कहती है रात-दिन,
खून की नदियॉं क्यूं, बहती है रात-दिन,
वे तो बम फोडकर, चले जाते हूरों से मिलने,
यहॉं बस्तियॉं जलती, रहती है रात-दिन ।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

08 August, 2015

छंद : सदा ही तिरंगा दिखे हर ओर शान से

घनाक्षरी छंद

India Tiranga Flag Himanshu Bhawsar Hind

खंड खंड में विखंड, कट रहा है भूखंड
        चंड ये प्रचंड रहे देव वरदान से

गंग जलधार संग दौडते रहे तुरंग
        मान स्वाभिमान नहीं घटे अभिमान से

रूके नहीं झुके नहीं, निशाने से चूके नहीं
        सदा ही तिरंगा दिखे हर ओर शान से

रिंद रिंद अरविंद, बोले जय जय 'हिन्द'
        समझौता हो न भारतीय स्वाभिमान से 

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

03 August, 2015

ग़ज़ल : यहाँ परदेस में अक्सर, मुझे माँ याद आती है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)


Gazal Maa Holi Diwali City Shehar Himanshu Bhawsar Hind Indore


शहर की रोशनी में अब, फ़क़त यादें रुलाती है
पुरानी याद के साये, तले आसूँ बहाती है ।१।
वहाँ होली मनाते तो, दिलों की दूरियां मिटती,
यहाँ पर ज़िंदगी हर दिन, नयी दूरी बनाती है ।२।

दिवाली पर वहां दीपक, यहाँ पर मोमबत्ती है,
वहां ग़म को जलाते थे, यहाँ बस्ती जलाती है ।३।

किसी के ब्याह में होता, वहां पर नाचना गाना,
यहाँ दुनियाँ मुझे अपने, इशारों पर नचाती है ।४।

खिलौने से कभी खेला, कहाँ पर खो गया बचपन,
यहाँ हर रोज़ दुनियाँ खेल ये कैसा खिलाती है ।५।

कभी जब देखता हूँ मैं, कहीं रोता हुआ बच्चा,
यहाँ परदेस में अक्सर, मुझे माँ याद आती है ।६।

सदा माँ बाप के चरणों, तले ही स्वर्ग है मिलता,
यहाँ इस 'हिन्द' की रचना, यहीं बस गीत गाती है ।७।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

31 July, 2015

ग़ज़ल : किसी नें माँग में सिंदूर तेरा ही सजाया है

रचनाकार: हिमांशु भावसार "हिन्द" इंदौर (म.प्र.)

Himanshu Bhawsar Hind Gazal Chand Woman

ज़रा देखो झरोखे से,निकल कर चाँद आया है,
सुहानी चांदनी फैली,नज़ारा जगमगाया है ।१।

कहाँ है तू बता हमदम,दिखाई क्यूँ नहीं देता,
पलक में आज मेरी तू,नमी भरपूर  लाया है ।२।

मुझे बस प्यार तुझसे है,ज़माने से कहूँ कैसे,
ज़माने से छुपा करके,तुझे दिल में बसाया है ।३।

वहां महफ़िल सजाये तू,यहां मुझको सज़ा मिलती,
ज़माने को हँसाया है,मुझे क्यूँ कर रुलाया है ।४।

कभी तो याद कर ले तू,अग़र फुरसत मिले तुझको,
यहाँ इक चाँद है बैठा,जिसे तूने बनाया है ।५।

निगाहें राह तकती है,यहाँ बैठी अकेली है,
किसी नें माँग में सिंदूर तेरा ही सजाया है ।६।
Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indoreहिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

29 July, 2015

ग़ज़ल : बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

Himanshu Bhawsar Hind Maa-Baap Garib
बसा लेता नई दुनिया, दिल-ए-पत्थर नहीं होता
मुहब्बत हो किसी से फिर, यहाँ अक्सर नहीं होता ।१।

जवानी चार दिन की है, गुमाँ किस बात का यारों,
कलम हो जो मुहब्बत में, सदा वो सर नहीं होता ।२।

निगाहें राह तकती है, यहाँ जिसकी तमन्ना में,
वहां महफ़िल सजाये है, जहाँ दिलबर नहीं होता ।३।

हवेली में नहीं आती, ज़रा देखो वहां नींदें,
गरीबों बदनसीबों के, यहाँ बिस्तर नहीं होता ।४।

सदा देखा यही हमने, यही कहते सभी आये,
बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता ।५।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

27 July, 2015

कविता : आरक्षण

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

aarakshan hatao India Hind

आरक्षण आरक्षण आरक्षण
शोर मचा रहा है धरती का कण कण

कितने ही दिखे विरोध में यहाँ
कितनो ने जताई सहमति
चंद वोटों की खातिर नेताओं ने
दी आरक्षण को अनुमति

हाँ, मैं भी चाहता हूँ आरक्षण हो
जिसमें नहीं गरीबों का भक्षण हो
किसानों को मिले सभी सुविधा
बेटियों का हर वक़्त यहाँ पर रक्षण हो

सभी को मिले समानता का अधिकार,
किसी धर्म का न हो यहाँ पर प्रतिकार,
कन्याएं न मारी जाएं भ्रूण में कभी 
सशक्त कानून बन जाएं अभी के अभी

पिता पति भाई हर आदमी में रक्षा का लक्षण हो
मैं चाहता हूँ, कि देश में ऐसा आरक्षण हो।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

25 July, 2015

छंद : कहॉं छुप जाती खादी, बादलों की ऋतु में


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


जब कभी बाढ़ आती, सदा सेना आगे आती
कहॉं छुप जाती खादी, बादलों की ऋतु में

बारिश में कागज़ की, नाव देखों चल पडी,
कहानी सुनाये दादी, बादलों की ऋतु में

सावन की रूत आई, प्रीत गीत संग लाई,
खुश सारी है आबादी, बादलों की ऋतु में

चारों ओर हरियाली, छाई जैसे खुशहाली,
बदली लगे है वादी, बादलों की ऋतु में

हिमांशु भावसार "हिन्द"

24 July, 2015

ग़ज़ल : कभी दिल्ली बताये राज़, दावत कौन करता है

रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

Dilli Delhi Hindu Muslim Riots Cow

हवस की राह चलते है, मुहब्बत कौन करता है,
फरेबी ज़िन्दगी में आज चाहत कौन करता है।१।

गरीबों के नसीबों में, मयस्सर भी नहीं रोटी,
कभी दिल्ली बताये राज़ दावत कौन करता है।२।

यहाँ फैला रहे है वे, ज़रा सी बात पर दंगे,
ज़रा मुझको बताओ तो, बगावत कौन करता है।३।

अगर संघी नहीं मारे, नहीं कहती कुराने भी,
बताओ गाय माता से, अदावत कौन करता है।४।

नमाज़ी ने कहा यह तो, पुजारी भी यही बोला,
दिलो को हारकर रब की, इबादत कौन करता है।५।

जहां में 'हिन्द' ढूंढा है, नहीं मिलती कचहरी भी,
गरीबों की यहाँ अब तो, वक़ालत कौन करता है।६।

*अदावत: बैर

Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894