10 August, 2015

छंद मुक्त : यहॉं बस्तियॉं जलती रहती है रात-दिन

देश की वर्तमान स्थिति पर एक रचना

Azad Bhagat Bharat India

सिसकती मॉं भारती, रहती है रात-दिन,
अपनों के हाथों हारती, रहती है रात-दिन,
जी में आता है धर लूं, रूप भगत-आज़ाद का,
जीने की चाह मारती, रहती है रात-दिन ।

सांसे रोज मेरी मुझसे, कहती है रात-दिन,
खून की नदियॉं क्यूं, बहती है रात-दिन,
वे तो बम फोडकर, चले जाते हूरों से मिलने,
यहॉं बस्तियॉं जलती, रहती है रात-दिन ।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

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