देश की वर्तमान स्थिति पर एक रचना
सिसकती मॉं भारती, रहती है रात-दिन,
अपनों के हाथों हारती, रहती है रात-दिन,
जी में आता है धर लूं, रूप भगत-आज़ाद का,
जीने की चाह मारती, रहती है रात-दिन ।
सांसे रोज मेरी मुझसे, कहती है रात-दिन,
खून की नदियॉं क्यूं, बहती है रात-दिन,
वे तो बम फोडकर, चले जाते हूरों से मिलने,
यहॉं बस्तियॉं जलती, रहती है रात-दिन ।
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)
No comments:
Post a Comment