04 September, 2015

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'



Kavi Himanshu Bhawsar Hind Kavita Khandhar Love Indore

आज फिर एक सदी के बाद
पहुंचा उस जगह
जहां कभी मिला करते थे हम

आज भी उन दीवारों पर
गुदा हुआ मिला तेरा नाम 

मेरे नाम के साथ

दीवारों का स्पर्श जैसे 

आज फिर तुझे छू लिया मैंने

साँय साँय करती हवा आज फिर लगी
जैसे कानों में तुम धीरे से करती थी 

मोहब्बत का इज़हार

कल तक महज़ ये सब 

कागज़ी बाते लगती थी
आज महसूस हुआ कि

"खंडहर बोलते हैं"


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

इंदौर (म. प्र.)


2 comments:

  1. बेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया नीरजा जी :-)

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