मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
आज फिर एक सदी के बाद
पहुंचा उस जगह
जहां कभी मिला करते थे हम
आज भी उन दीवारों पर
गुदा हुआ मिला तेरा नाम
मेरे नाम के साथ
दीवारों का स्पर्श जैसे
आज फिर तुझे छू लिया मैंने
साँय साँय करती हवा आज फिर लगी
जैसे कानों में तुम धीरे से करती थी
मोहब्बत का इज़हार
कल तक महज़ ये सब
कागज़ी बाते लगती थी
आज महसूस हुआ कि
"खंडहर बोलते हैं"
बेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया नीरजा जी :-)
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