18 September, 2015

ग़ज़ल : सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

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देश की सीमा पुकारे,वीर घबराना नहीं ।।
सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं ।१।

शौर्य का अनमोल गहना,देश ने तुमको दिया,
कर्ज इसका तुम चुकाना,वीर कतराना नहीं ।२।

तन समर्पित मन समर्पित, जान भी दूंगा मगर,
शर्त इतनी आँख कोई अश्क़ भर लाना नहीं ।३।

ओढ कर के तुम तिरंगा,ग़र यहाँ आये सजन,
इस कदर तुम बेरूखी से, रूठकर जाना नहीं ।४।

भारती के लाल को ये, 'हिन्द' करता है नमन,
याद रखना ऐ सियासत,भेद करवाना नहीं ।५।


हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

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