17 November, 2015

कविता | विरोध के स्वर- नेहरू जयंती

~~~विरोध के स्वर~~~



 ~~~विरोध के स्वर~~~

मुझे माफ़ कर देना मित्रों, मैं नहीं कह पाऊँगा
दामन पे जो दाग लगा हैं, मैं नहीं सह पाऊँगा
कभी राष्ट्र के गीत सुनाये, आज बगावत गाऊंगा
पर बगावत करके भी मैं, राष्ट्रधर्म निभाऊंगा

कैसे कह दूँ उनको चाचा, जिसने बांटा भाई को,
खींची लकीरे सरहद की, काटा भारत माई को,

गाँधी के अनुदान से देखो, जो पहले प्रधान बने
लौहपुरुष को पीछे रख कर, भारत का सम्मान बने

आज जयंती उनकी पूरा, भारत देश मनाता है
ग़ाज़ी के वंशज थे जो, बहुत पुराना नाता है

गर कोई मुझको झुठला दे, मंच छोड़कर जाऊँगा
आज कसम खाता हूँ ये, गीत नहीं दोहराऊंगा


-हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर(म. प्र.)

दिनांक १४ नवम्बर २०१४

2 comments:

  1. कटु सत्य हिमांशु भाई

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद रोहित भाई

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