घनाक्षरी छंद
खंड खंड में विखंड, कट रहा है भूखंड
चंड ये प्रचंड रहे देव वरदान से
गंग जलधार संग दौडते रहे तुरंग
मान स्वाभिमान नहीं घटे अभिमान से
रूके नहीं झुके नहीं, निशाने से चूके नहीं
सदा ही तिरंगा दिखे हर ओर शान से
रिंद रिंद अरविंद, बोले जय जय 'हिन्द'
समझौता हो न भारतीय स्वाभिमान से
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
No comments:
Post a Comment