रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
राहों को तकती ये नजर
क्या पता शायद,
आ जाये फिर कोई सहर
बीती यादों की
फटी पुरानी दुशाला ओढ़े
पथरीली आँखों से अविरल
झर झर झर झर बहता झरना
पिछली दिवाली जब वो आया था
पूरे गॉंव ने मिलकर त्यौहार मनाया था
वादा करके गया वो वापस
कि होली पर फिर आयेगा
सबको रंग लगायेगा
आधा वादा किया उसने पूरा
आया होली पर
पर तीन रंगों की धानी चुनर में लिपटकर
फागुन में देखा जब
नैनों से बहता सावन
होलिका की अग्नि में
दहकता हुआ तन मन
जैसे अब बस यादें ही बची हो
पर नियति कुछ और कहती हो
एक बीज,
जो बोकर गया था वो दिवाली पर,
अब फल मिलने वाला है
उस फौजी का बेटा,
इस दुनिया में आने वाला है
भारत मॉं की रक्षा हेतु,
फौजी फिर वापस आया है,
सावन की बूंदों ने भी,
गीत अनोखा गाया है
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर ( म. प्र.)
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