09 October, 2015

ग़ज़ल : ग़ज़ल अशफ़ाक़ की भी अब, यहाँ पर तिलमिलाती हैं


Bhagat Azad Bismil Ashfaq

गरीबी तो ज़रा देखो, यहाँ क्या दिन दिखाती हैं
जनम जिसने दिया वो माँ, ही बेटी बेच जाती हैं ।१।

निवाला छोड़ देते है, अमीरों का बडप्पन है,
गरीबी उस निवाले से, कहीं खाना खिलाती हैं ।२।

शरीफों ने बिगाड़ा हैं, यहाँ आबो-हवाओं को,
धरम की राजनीती भी, यहाँ लाशें बिछाती हैं ।३।

शरम करते कहीं होंगे, भगत-आज़ाद-बिस्मिल जी,
ग़ज़ल अशफ़ाक़ की भी अब, यहाँ पर तिलमिलाती हैं ।४।

इसी दिन के लिए ही क्या, वतन पर जान हमनें दी?
शहीदों की चिताओं से, सुनों आवाज़ आती हैं ।५।

भला कैसे छुपाएं टीस उठती 'हिन्द' के दिल में,
कलम जब भी उठाता हूं, नज़र आँसूं बहाती है ।६।


-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

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