रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे
दूध पीते रहे, श्याम जी तो यहाँ
यज्ञ करते रहे, राम जी तो यहाँ
घास खाती सदा, दूध देती रहूं
इक यहीं बात को, लो सुनो मैं कहूं
गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे ।१।
गैस गोबर बने, ख़ाद बनती रहे
पेट भरता रहे, आय होती रहे
फिर भला क्यों मुझे, मारते तुम रहे
फिर भला क्यों मुझे, काटते तुम रहे
कामधेनू बनूं, तुम सभी के लिये
दर्द सारे सहूं, जो भी तुमने दिये ।२।
गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे
हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
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