Himanshu Bhawsar 'Hind' | हिमांशु भावसार "हिन्द"
A Nationalist Poet | एक राष्ट्रवादी कवि
26 August, 2015
आरक्षण : फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म. प्र.)
फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में,
लेकर देखो खड़े हुए हैं, भीख की थाली भारत में,
आपस में ही लड़ रहे हैं, सुग्रीव बाली भारत में,
दिल्ली वाले बजा रहे हैं, देखो ताली भारत में,
जात-पाँत के नाम पर टुकड़े, सैंतालिस में कर डाले,
बंटवारे के समय से अब तक, ये है सियासत की चालें,
अभी तलक गुर्जर थे देखो, अब आये गुजराती हैं,
भारत माता की छाती भी, पीड़ा से भर आती हैं,
हमनें भी चाहा था फिर से, कोई पटेल सा आ जाये,
भाई-चारे और एकता का, गीत अनोखा गा जाये,
पर आरक्षण की आंधी ने ये, खेल अनोखा खेला हैं,
भारत माता ने दामन पर, दाग ये कैसा झेला हैं,
आज नहीं लगते हैं वो तो, वंशज कोई पटेल के,
अपनों के दुश्मन बन बैठे, वो तो खूनी खेल के,
तेरह बरस तक मोदी ने, बाग़ के जैसे सींचा था,
बना दिया गुजरात को जिसने, फूलों का बगीचा था,
तेरह घंटों में ही देखो, जल रहा गुजरात हैं,
जयचंदों के हाथों ही होता, आया यहाँ आघात हैं,
खुद को कहता है ये हार्दिक, उसकी सोच पटेल सी,
हमको तो लगती हैं चालें, ये तो सियासी खेल सी,
अरे पटेल की सोच कभी भी, इतनी ओछी नहीं थी जी,
एक सूत्र में रखने वाली, उनकी सोच रही थी जी,
तुम जाति के नाम पर अब तो, देश बांटने आये हो,
देश के गद्दारों के मन को, तुम बहुत ही भाये हो,
तुम कहते हो जातिवाद का, शुरू वहां आरक्षण हो,
'हिन्द' यहाँ पर कहता देश में, योग्यता का शासन हो.
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म. प्र.)
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