ठण्ड तो महज़ एक बहाना है,
बात ये है कि हमें नहीं नहाना है,
अपनी पीड़ा दुसरो को क्यों सौंपते हो
खुद की कमज़ोरी ठण्ड पे क्यों थोपते हो,
भला मानो ठण्ड का जो इतनी पड़ रही
वर्ना आठ महीने से रजाई पड़ी पड़ी सड़ रही,
कहाँ मिलेगा मज़ा रजाई में सोने का
पानी को दूर से ही देख मुंह धोने का,
गर ठण्ड न होती तो अभी बादल बरसते
या गर्मी में हम तुम सब तपते ही तपते,
इसलिए कहता हूँ मज़ा ले लो ठण्ड का
ज्ञान दे रहा हूँ सबको मैं ये फ्री फण्ड का
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