रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)
बसा लेता नई दुनिया, दिल-ए-पत्थर नहीं होता
मुहब्बत हो किसी से फिर, यहाँ अक्सर नहीं होता ।१।
जवानी चार दिन की है, गुमाँ किस बात का यारों,
कलम हो जो मुहब्बत में, सदा वो सर नहीं होता ।२।
निगाहें राह तकती है, यहाँ जिसकी तमन्ना में,
वहां महफ़िल सजाये है, जहाँ दिलबर नहीं होता ।३।
हवेली में नहीं आती, ज़रा देखो वहां नींदें,
गरीबों बदनसीबों के, यहाँ बिस्तर नहीं होता ।४।
सदा देखा यही हमने, यही कहते सभी आये,
बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता ।५।
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)
बसा लेता नई दुनिया, दिल-ए-पत्थर नहीं होता
मुहब्बत हो किसी से फिर, यहाँ अक्सर नहीं होता ।१।
जवानी चार दिन की है, गुमाँ किस बात का यारों,
कलम हो जो मुहब्बत में, सदा वो सर नहीं होता ।२।
निगाहें राह तकती है, यहाँ जिसकी तमन्ना में,
वहां महफ़िल सजाये है, जहाँ दिलबर नहीं होता ।३।
हवेली में नहीं आती, ज़रा देखो वहां नींदें,
गरीबों बदनसीबों के, यहाँ बिस्तर नहीं होता ।४।
सदा देखा यही हमने, यही कहते सभी आये,
बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता ।५।
रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)
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