28 August, 2015

छंद : गर्भ में ही मार कर, पाप मत कीजिये

मातृ शक्ति को नमन करते हुये बेटियों पर चार पंक्तियाँ 

Beti Bachao Indore Himanshu Bhawsar India

देवियों की अवतार, होती है तो बेटियों को,
गर्भ में ही मार कर, पाप मत कीजिये

कन्यादान महादान, होता आया जग में तो,
बेटियों के खून वाला, घूँट मत पीजिये

बेटियाँ पढाओ और, बेटियाँ बचाओं वाला,
जन-जन अब यह, पुण्य काम कीजिये

करता हूँ आहवान, बच जाये हर प्राण,
गर्भ में न बेटियों का, खून होने दीजिये

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

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26 August, 2015

आरक्षण : फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

इंदौर (म. प्र.)

Aarakshan Hatao India Indore Himanshu Bhawsar Hind
फिर से देखो आग लगी हैं, आरक्षण वाली भारत में,
लेकर देखो खड़े हुए हैं, भीख की थाली भारत में,
आपस में ही लड़ रहे हैं, सुग्रीव बाली भारत में,
दिल्ली वाले बजा रहे हैं, देखो ताली भारत में,

जात-पाँत के नाम पर टुकड़े, सैंतालिस में कर डाले,
बंटवारे के समय से अब तक, ये है सियासत की चालें,

अभी तलक गुर्जर थे देखो, अब आये गुजराती हैं,
भारत माता की छाती भी, पीड़ा से भर आती हैं,

हमनें भी चाहा था फिर से, कोई पटेल सा आ जाये,
भाई-चारे और एकता का, गीत अनोखा गा जाये,

पर आरक्षण की आंधी ने ये, खेल अनोखा खेला हैं,
भारत माता ने दामन पर, दाग ये कैसा झेला हैं,

आज नहीं लगते हैं वो तो, वंशज कोई पटेल के,
अपनों के दुश्मन बन बैठे, वो तो खूनी खेल के,

तेरह बरस तक मोदी ने, बाग़ के जैसे सींचा था,
बना दिया गुजरात को जिसने, फूलों का बगीचा था,
 
तेरह घंटों में ही देखो, जल रहा गुजरात हैं,
जयचंदों के हाथों ही होता, आया यहाँ आघात हैं,

खुद को कहता है ये हार्दिक, उसकी सोच पटेल सी,
हमको तो लगती हैं चालें, ये तो सियासी खेल सी,

अरे पटेल की सोच कभी भी, इतनी ओछी नहीं थी जी, 
एक सूत्र में रखने वाली, उनकी सोच रही थी जी,

तुम जाति के नाम पर अब तो, देश बांटने आये हो,
देश के गद्दारों के मन को, तुम बहुत ही भाये हो,

तुम कहते हो जातिवाद का, शुरू वहां आरक्षण हो,
'हिन्द' यहाँ पर कहता देश में, योग्यता का शासन हो.


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म. प्र.)

21 August, 2015

कुण्डलियॉं: वर्तमान सरकार, लग रही है हम सबकी

कुण्डलियॉं

सबकी अपनी ताल है, सबका अपना साज़ ।
रजनीचर के राज में, उल्लू के सर ताज़ ।।

उल्लू के सर ताज़, कोई तो अब बचाये,
कैसी कैसी बात, राहुल बाबा बताये,

कहे 'हिन्द' कविराय, बात करता हूं अबकी,
वर्तमान सरकार, लग रही है हम सबकी ।

रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर

18 August, 2015

छंद : झॉंसी वाली रानी जैसी, वीरता सिखाईये



मातृ शक्ति को नमन करते हुए बेटियों पर एक छंद निवेदित करता हूं


Jhansi Beti Bachao Himanshu Bhawsar Indore

बेटियॉं हमारा कल, देती शुभ कर्म फल,
        बेटियों को कोख में तो, ऐसे न मिटाईये

घरो को संभालती है, उसको सँवारती है,
        बगिया की कलियॉं है, इनको सजाईये

गर डरते हो सोच, भेडिये खायेंगे नोच,
        भीत भरी भावना को, मन से भगाईये

कर सके आत्मरक्षा, दे दो उन्हें शस्त्र शिक्षा,
        झॉंसी वाली रानी जैसी, वीरता सिखाईये


रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

17 August, 2015

कविता : भारत मॉं की रक्षा हेतु, फौजी फिर वापस आया है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


राहों को तकती ये नजर
क्या पता शायद,
आ जाये फिर कोई सहर

बीती यादों की
फटी पुरानी दुशाला ओढ़े

पथरीली आँखों से अविरल
झर झर झर झर बहता झरना

पिछली दिवाली जब वो आया था
पूरे गॉंव ने मिलकर त्यौहार मनाया था

वादा करके गया वो वापस
कि होली पर फिर आयेगा
सबको रंग लगायेगा

आधा वादा किया उसने पूरा
आया होली पर
पर तीन रंगों की धानी चुनर में लिपटकर

फागुन में देखा जब 
नैनों से बहता सावन
होलिका की अग्नि में
दहकता हुआ तन मन

जैसे अब बस यादें ही बची हो
पर नियति कुछ और कहती हो

एक बीज,
जो बोकर गया था वो दिवाली पर,
अब फल मिलने वाला है
उस फौजी का बेटा,
इस दुनिया में आने वाला है

भारत मॉं की रक्षा हेतु,
फौजी फिर वापस आया है,
सावन की बूंदों ने भी,
गीत अनोखा गाया है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर ( म. प्र.)

15 August, 2015

दोहे : भारत की गाथा लिखूं, बढती जाये पीर ।।

India Bharat Hind Doheहिन्द के दोहे


लिखने को दोहे अभी, मैं भी हुआ अधीर ।
भारत की गाथा लिखूं, बढती जाये पीर ।।

गॉंधी नेहरु लिख गये, कैसी ये तकदीर ।
जो देखूं इतिहास को, बढती जाये पीर ।।

कभी हुए आजाद से, भगतसिंह से वीर ।
आज हनी सिंह छा गया, बढती जाये पीर ।।

देख सको तो देख लो, भारत की तस्वीर ।
कहता है ये 'हिन्द' यहॉं, बढती जाये पीर ।।

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

13 August, 2015

छंद : यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है


Bharat India Tiranga Flag Himanshu Bhawsar Hind

भारत माता का हर बेटा, मस्ती में अब झूम रहा है,
यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है।।

यूं ही नहीं मिली आज़ादी, कीमत बड़ी ही चुकाई थी
अमर शहीदों ने मिलकर के, लड़ी बहुत यहाँ लड़ाई थी

आज ज़रूरत आन पड़ी है, फिर से देश बचाना होगा
देशद्रोहियों आतंकियों को, फिर से सबक सिखाना होगा

नेताओं के आगे पीछे, घटनाक्रम अब घूम रहा है।
यह राष्ट्र तिरंगा भारत का, अम्बर को चूम रहा है।।



Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

10 August, 2015

छंद मुक्त : यहॉं बस्तियॉं जलती रहती है रात-दिन

देश की वर्तमान स्थिति पर एक रचना

Azad Bhagat Bharat India

सिसकती मॉं भारती, रहती है रात-दिन,
अपनों के हाथों हारती, रहती है रात-दिन,
जी में आता है धर लूं, रूप भगत-आज़ाद का,
जीने की चाह मारती, रहती है रात-दिन ।

सांसे रोज मेरी मुझसे, कहती है रात-दिन,
खून की नदियॉं क्यूं, बहती है रात-दिन,
वे तो बम फोडकर, चले जाते हूरों से मिलने,
यहॉं बस्तियॉं जलती, रहती है रात-दिन ।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

08 August, 2015

छंद : सदा ही तिरंगा दिखे हर ओर शान से

घनाक्षरी छंद

India Tiranga Flag Himanshu Bhawsar Hind

खंड खंड में विखंड, कट रहा है भूखंड
        चंड ये प्रचंड रहे देव वरदान से

गंग जलधार संग दौडते रहे तुरंग
        मान स्वाभिमान नहीं घटे अभिमान से

रूके नहीं झुके नहीं, निशाने से चूके नहीं
        सदा ही तिरंगा दिखे हर ओर शान से

रिंद रिंद अरविंद, बोले जय जय 'हिन्द'
        समझौता हो न भारतीय स्वाभिमान से 

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

03 August, 2015

ग़ज़ल : यहाँ परदेस में अक्सर, मुझे माँ याद आती है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)


Gazal Maa Holi Diwali City Shehar Himanshu Bhawsar Hind Indore


शहर की रोशनी में अब, फ़क़त यादें रुलाती है
पुरानी याद के साये, तले आसूँ बहाती है ।१।
वहाँ होली मनाते तो, दिलों की दूरियां मिटती,
यहाँ पर ज़िंदगी हर दिन, नयी दूरी बनाती है ।२।

दिवाली पर वहां दीपक, यहाँ पर मोमबत्ती है,
वहां ग़म को जलाते थे, यहाँ बस्ती जलाती है ।३।

किसी के ब्याह में होता, वहां पर नाचना गाना,
यहाँ दुनियाँ मुझे अपने, इशारों पर नचाती है ।४।

खिलौने से कभी खेला, कहाँ पर खो गया बचपन,
यहाँ हर रोज़ दुनियाँ खेल ये कैसा खिलाती है ।५।

कभी जब देखता हूँ मैं, कहीं रोता हुआ बच्चा,
यहाँ परदेस में अक्सर, मुझे माँ याद आती है ।६।

सदा माँ बाप के चरणों, तले ही स्वर्ग है मिलता,
यहाँ इस 'हिन्द' की रचना, यहीं बस गीत गाती है ।७।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'