25 September, 2015

कविता : मैं नेताओं पर नहीं लिखता




 मैं नेताओं पर नहीं लिखता

लोग पूछते है मुझसे,
मैं नेताओं पर क्यों नहीं लिखता,
मैं बस इसलिये नहीं लिखता,
क्यूंकि,
मेरा ज़मीर चंद कागज के टुकडों में नहीं बिकता
क्या लिखूं मैं इन भ्रष्ट नेताओं पर,
जिन्हें भारत माता का दुखों में डूबा हुआ चेहरा नहीं दिखता

आज देश में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे को काट रहे है
और ये भ्रष्ट नेता सेंक रहे वोटों की रोटियाँ, और आपस में बाँट रहे है
देशभक्ति की बातें करने वालों को ये लोग डाँट रहे है
दिल्ली जाकर कुर्सी के तलवे चाँट रहे है

बात चली जब नेताओं की, तो ये दिल दुखों से भर आता है
और आँसूं भरी आँखों के सामने बस एक ही नाम नजर आता है

कि नेता तो था वो वीर सुभाष,
जिसने कहा मैं और न कुछ लूंगा
तुम बस मुझे खून दो,
मैं तुम्हे.........

और आज देश में कोई भी नेता, 
मुझे वीर सुभाष जैसा नहीं दिखता,
बस यही एक कारण है, कि
मैं नेताओं पर नहीं लिखता
मैं नेताओं पर नहीं लिखता

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)

21 September, 2015

गीत : गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

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गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे

दूध पीते रहे, श्याम जी तो यहाँ
यज्ञ करते रहे, राम जी तो यहाँ
घास खाती सदा, दूध देती रहूं
इक यहीं बात को, लो सुनो मैं कहूं
गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे ।१।


गैस गोबर बने, ख़ाद बनती रहे
पेट भरता रहे, आय होती रहे
फिर भला क्यों मुझे, मारते तुम रहे
फिर भला क्यों मुझे, काटते तुम रहे
कामधेनू बनूं, तुम सभी के लिये
दर्द सारे सहूं, जो भी तुमने दिये ।२।

गाय माता कहे, यूं न काटो मुझे
धर्म के नाम पर, यूं न बाँटो मुझे

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)

18 September, 2015

ग़ज़ल : सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

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देश की सीमा पुकारे,वीर घबराना नहीं ।।
सर भले ही हो क़लम पर, नाक कटवाना नहीं ।१।

शौर्य का अनमोल गहना,देश ने तुमको दिया,
कर्ज इसका तुम चुकाना,वीर कतराना नहीं ।२।

तन समर्पित मन समर्पित, जान भी दूंगा मगर,
शर्त इतनी आँख कोई अश्क़ भर लाना नहीं ।३।

ओढ कर के तुम तिरंगा,ग़र यहाँ आये सजन,
इस कदर तुम बेरूखी से, रूठकर जाना नहीं ।४।

भारती के लाल को ये, 'हिन्द' करता है नमन,
याद रखना ऐ सियासत,भेद करवाना नहीं ।५।


हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

15 September, 2015

ग़ज़ल : किसानों ने हमेशा ही, हमारा पेट पाला है

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


Jay Jawan Jay Kisan Himanshu Bhawsar


ज़मीं को चीर कर देखों, दिया हमको निवाला है,
किसानों ने हमेशा ही, हमारा पेट पाला है ।१।

हमारा पेट भरने को, सुबह से खेत पर जाता, 
अँधेरों में रहे वह तो, हमारे घर उजाला है ।२।

ठिठुरती ठंड हो चाहे, भले तपती दुपहरी हो,
भरी बारिश में भी उसने, धरा में बीज डाला है ।३।

लगाया जय जवानों जय किसानों का ही नारा था,
वहाँ दुश्मन भगाये तो, यहाँ जीवन को ढाला है ।४।

सिपाही ने बचाई देश की सीमा नमन उनको, 
किसानों ने अनाजों से, यहाँ हमको संभाला है ।५।

नहीं दिखता मुझे कोई, किसे ये 'हिन्द' बतलाये,
जवानी से बुढापा खेत में उसने निकाला है ।६।

हिमांशु भावसार 'हिन्द'
इंदौर (म.प्र.)

11 September, 2015

छंद : भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती

छंद : भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती


Bholenath Tandav Himanshu Bharat Mata Neta


नेताजी मचान पर, तीर था कमान पर,
        मानवता तिल तिल, देखो कैसे मरती,
एक की तो मौत से भी, देखो पेट नहीं भरा,
        नर्मदा की आँखे अब, झर झर झरती,

देखो कैसी राजनीति, कर रहे नेतागण,
        देखो भारत माता भी, रुदन है करती

एक दिन में ही देखो, सबक है मिल गया
        भोले जी जो रुष्ट हुए, डोल गई धरती।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' | इंदौर

04 September, 2015

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

मुक्त-छंद : खंडहर बोलते हैं

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'



Kavi Himanshu Bhawsar Hind Kavita Khandhar Love Indore

आज फिर एक सदी के बाद
पहुंचा उस जगह
जहां कभी मिला करते थे हम

आज भी उन दीवारों पर
गुदा हुआ मिला तेरा नाम 

मेरे नाम के साथ

दीवारों का स्पर्श जैसे 

आज फिर तुझे छू लिया मैंने

साँय साँय करती हवा आज फिर लगी
जैसे कानों में तुम धीरे से करती थी 

मोहब्बत का इज़हार

कल तक महज़ ये सब 

कागज़ी बाते लगती थी
आज महसूस हुआ कि

"खंडहर बोलते हैं"


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'

इंदौर (म. प्र.)


01 September, 2015

छंद-कविता : भारत माँ के नेत्र सजल हैं, कैसे मैं श्रृंगार लिखूं

रचनाकार : हिमांशु भावसार "हिन्द"

Kavita India Bharat Himanshu Bhawsar

मैं भी लिख सकता था तुम पर, प्रेम प्रणय के गीतों को,
मैं भी लिख सकता था भर लूँ,  बारिशों के छींटों को,
मैं भी लिख सकता था पी संग, गुजरी उन सब रातों को,
मैं भी लिख सकता था वो सब, बासंती जज़्बातों को,

मैंने भी चाहा था लिखना, प्रेम प्रीति की बातों को,
मैंने भी चाहा था लिखना, उन सब रिश्ते नातों को,

पर मैं भारत का बेटा हूँ, कैसे आँखें मूँदूँ मैं,
देश जले जब मेरा तो, श्रृंगार कहाँ से ढूँढूँ मैं,

देश में फ़ैली हैं जब नफ़रत, कैसे तुझ संग प्यार लिखूं,
भारत माँ के नेत्र सजल हैं, कैसे मैं श्रृंगार लिखूं 

रचनाकार : हिमांशु भावसार "हिन्द"

इंदौर (म. प्र.)