रचनाकार: हिमांशु भावसार "हिन्द" इंदौर (म.प्र.)
समय को दोष मत देना, समय सबका बदलता है,
तपिश झेले तभी सोना, यहॉं कंगन में ढलता है ।१।
शिखर पर देखकर मुझको, सदा जलती रही दुनिया,
फ़लक के चॉंद तारों को, धरा का दीप खलता है ।२।
मुहब्बत की डगर पर तुम, कदम अब सोच कर रखना,
शमा के प्यार में अक्सर, पतंगा रोज़ जलता है ।३।
अगर वो साफ दिल का है, गले उसको लगा लूंगा,
मगर मैं जानता हूँ पीठ पीछे मुझको छलता है ।४।
भले दुनिया कहे पत्थर, मगर ये "हिन्द" को मालूम,
हजारों चोट सहने पर, वो मूरत में बदलता है ।५।
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