31 July, 2015

ग़ज़ल : किसी नें माँग में सिंदूर तेरा ही सजाया है

रचनाकार: हिमांशु भावसार "हिन्द" इंदौर (म.प्र.)

Himanshu Bhawsar Hind Gazal Chand Woman

ज़रा देखो झरोखे से,निकल कर चाँद आया है,
सुहानी चांदनी फैली,नज़ारा जगमगाया है ।१।

कहाँ है तू बता हमदम,दिखाई क्यूँ नहीं देता,
पलक में आज मेरी तू,नमी भरपूर  लाया है ।२।

मुझे बस प्यार तुझसे है,ज़माने से कहूँ कैसे,
ज़माने से छुपा करके,तुझे दिल में बसाया है ।३।

वहां महफ़िल सजाये तू,यहां मुझको सज़ा मिलती,
ज़माने को हँसाया है,मुझे क्यूँ कर रुलाया है ।४।

कभी तो याद कर ले तू,अग़र फुरसत मिले तुझको,
यहाँ इक चाँद है बैठा,जिसे तूने बनाया है ।५।

निगाहें राह तकती है,यहाँ बैठी अकेली है,
किसी नें माँग में सिंदूर तेरा ही सजाया है ।६।
Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indoreहिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

29 July, 2015

ग़ज़ल : बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

Himanshu Bhawsar Hind Maa-Baap Garib
बसा लेता नई दुनिया, दिल-ए-पत्थर नहीं होता
मुहब्बत हो किसी से फिर, यहाँ अक्सर नहीं होता ।१।

जवानी चार दिन की है, गुमाँ किस बात का यारों,
कलम हो जो मुहब्बत में, सदा वो सर नहीं होता ।२।

निगाहें राह तकती है, यहाँ जिसकी तमन्ना में,
वहां महफ़िल सजाये है, जहाँ दिलबर नहीं होता ।३।

हवेली में नहीं आती, ज़रा देखो वहां नींदें,
गरीबों बदनसीबों के, यहाँ बिस्तर नहीं होता ।४।

सदा देखा यही हमने, यही कहते सभी आये,
बिना माँ बाप के कोई, बसेरा घर नहीं होता ।५।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

27 July, 2015

कविता : आरक्षण

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

aarakshan hatao India Hind

आरक्षण आरक्षण आरक्षण
शोर मचा रहा है धरती का कण कण

कितने ही दिखे विरोध में यहाँ
कितनो ने जताई सहमति
चंद वोटों की खातिर नेताओं ने
दी आरक्षण को अनुमति

हाँ, मैं भी चाहता हूँ आरक्षण हो
जिसमें नहीं गरीबों का भक्षण हो
किसानों को मिले सभी सुविधा
बेटियों का हर वक़्त यहाँ पर रक्षण हो

सभी को मिले समानता का अधिकार,
किसी धर्म का न हो यहाँ पर प्रतिकार,
कन्याएं न मारी जाएं भ्रूण में कभी 
सशक्त कानून बन जाएं अभी के अभी

पिता पति भाई हर आदमी में रक्षा का लक्षण हो
मैं चाहता हूँ, कि देश में ऐसा आरक्षण हो।

रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

25 July, 2015

छंद : कहॉं छुप जाती खादी, बादलों की ऋतु में


रचनाकार : हिमांशु भावसार 'हिन्द'


जब कभी बाढ़ आती, सदा सेना आगे आती
कहॉं छुप जाती खादी, बादलों की ऋतु में

बारिश में कागज़ की, नाव देखों चल पडी,
कहानी सुनाये दादी, बादलों की ऋतु में

सावन की रूत आई, प्रीत गीत संग लाई,
खुश सारी है आबादी, बादलों की ऋतु में

चारों ओर हरियाली, छाई जैसे खुशहाली,
बदली लगे है वादी, बादलों की ऋतु में

हिमांशु भावसार "हिन्द"

24 July, 2015

ग़ज़ल : कभी दिल्ली बताये राज़, दावत कौन करता है

रचनाकार: हिमांशु भावसार 'हिन्द' (इंदौर)

Dilli Delhi Hindu Muslim Riots Cow

हवस की राह चलते है, मुहब्बत कौन करता है,
फरेबी ज़िन्दगी में आज चाहत कौन करता है।१।

गरीबों के नसीबों में, मयस्सर भी नहीं रोटी,
कभी दिल्ली बताये राज़ दावत कौन करता है।२।

यहाँ फैला रहे है वे, ज़रा सी बात पर दंगे,
ज़रा मुझको बताओ तो, बगावत कौन करता है।३।

अगर संघी नहीं मारे, नहीं कहती कुराने भी,
बताओ गाय माता से, अदावत कौन करता है।४।

नमाज़ी ने कहा यह तो, पुजारी भी यही बोला,
दिलो को हारकर रब की, इबादत कौन करता है।५।

जहां में 'हिन्द' ढूंढा है, नहीं मिलती कचहरी भी,
गरीबों की यहाँ अब तो, वक़ालत कौन करता है।६।

*अदावत: बैर

Himanshu Bhawsar Hind Jhabua Indore-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

ग़ज़ल : समय को दोष मत देना, समय सबका बदलता है

रचनाकार: हिमांशु भावसार "हिन्द" इंदौर (म.प्र.)

samay waqt gazal himanshu bhawsar hind

समय को दोष मत देना, समय सबका बदलता है,
तपिश झेले तभी सोना, यहॉं कंगन में ढलता है ।१।

शिखर पर देखकर मुझको, सदा जलती रही दुनिया,
फ़लक के चॉंद तारों को, धरा का दीप खलता है ।२।

मुहब्बत की डगर पर तुम, कदम अब सोच कर रखना,
शमा के प्यार में अक्सर, पतंगा रोज़ जलता है ।३।

अगर वो साफ दिल का है, गले उसको लगा लूंगा,
मगर मैं जानता हूँ पीठ पीछे मुझको छलता है ।४।

भले दुनिया कहे पत्थर, मगर ये "हिन्द" को मालूम,
हजारों चोट सहने पर, वो मूरत में बदलता है ।५।

रचनाकार: हिमांशु भावसार "हिन्द" 

इंदौर (म.प्र.)

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