20 September, 2016

कविता : सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं, देश नहीं झुकने दूंगा



सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं, देश नहीं झुकने दूंगा
देश नहीं झुकने दूंगा मै, देश नहीं रूकने दूंगा

पर अब हमको ये बातें तो, केवल जुमले लगते है
फूल कमल के अब तो सारे, केवल गमले लगते है

हमने जब सत्ता सौंपी थी, ये उम्मीद लगाई थी
तुमने भी भारत रक्षा की, आशा एक जगाई थी

कहाँ गये वो सारे वादे, ये कैसी लाचारी है
मन की बातों के आगे क्यों, दिखती अब गन भारी है

लव लेटर लिखने वाली भी, बात कही थी जब तुमने
अस्मिता की लाज बचानी, बात कही थी जब तुमने

जिस भाषा में दुश्मन समझे, वैसे ही समझा आओ
दो के बदले दस शीशों को, काट यहाँ पर तुम लाओ

पर अब तो छप्पन इंची का, सीना गायब दिखता है
दृश्य सामने दिखता है वो, 'हिंद' यहाँ पर लिखता है

हर आतंकी हमला होता तब, गीत रूदाली गाते हो
साडी के बदले में फिर तुम, बिरयानी दे आते हो

याद करो चाणक्य कहानी, बिखरे शिखा केशो को
संधि वंधि भूल भाल कर, फाडो अध्यादेशो को

बहुत हो चुका अब सेना को, सीमा पर बढ जाने दो
गद्दारों की छाती पर तुम, सेना को चढ जाने दो

गर इतना ना कर पाये तो, चुल्लू में डूब मर जाना
अगले आम चुनावों में फिर, वोट माँगने मत आना

-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)

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