27 November, 2015

कविता चोर | छंद




कविता के मंच पर, चोर देखो आ गये है
दूसरो की कविता को, अपनी बताते है

रोला दोहा सोरठा में, अंतर भी नहीं पता
और बडी बडी देखो, डिंगे हाँक जाते है

हम लिखे रात भर, जाने क्या क्या सोचकर
चोर देखो हमारी ही, कवितायें गाते है

लगता है हमको तो, बस अब इतना ही
जन्म देने वाली माँ की, कोख को लजाते है


-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

19 November, 2015

झाँसी की रानी-वीरांगना लक्ष्मीबाई | घनाक्षरी छंद




पतिदेव देखो जब, स्वर्ग को सिधारे तब
सामने बडा ही देखा, दृश्य विकराल था

एक ओर देखा खड़ी , सेना शत्रु पक्ष बडी,
दूजी ओर भारती का, भाल लाल लाल था

बेटा पीठ बाँध कर, प्रण रण धार कर,
तोड़ने को चल पडी, जो बनाया जाल था

अंत में थी जब चली, और चिता में थी जली,
काँप रहा थर थर, जिसे देख काल था

-हिमांशु भावसार 'हिंद'
झाबुआ-इंदौर (म.प्र.)
+91-88270-89894

17 November, 2015

कविता | विरोध के स्वर- नेहरू जयंती

~~~विरोध के स्वर~~~



 ~~~विरोध के स्वर~~~

मुझे माफ़ कर देना मित्रों, मैं नहीं कह पाऊँगा
दामन पे जो दाग लगा हैं, मैं नहीं सह पाऊँगा
कभी राष्ट्र के गीत सुनाये, आज बगावत गाऊंगा
पर बगावत करके भी मैं, राष्ट्रधर्म निभाऊंगा

कैसे कह दूँ उनको चाचा, जिसने बांटा भाई को,
खींची लकीरे सरहद की, काटा भारत माई को,

गाँधी के अनुदान से देखो, जो पहले प्रधान बने
लौहपुरुष को पीछे रख कर, भारत का सम्मान बने

आज जयंती उनकी पूरा, भारत देश मनाता है
ग़ाज़ी के वंशज थे जो, बहुत पुराना नाता है

गर कोई मुझको झुठला दे, मंच छोड़कर जाऊँगा
आज कसम खाता हूँ ये, गीत नहीं दोहराऊंगा


-हिमांशु भावसार 'हिन्द'
झाबुआ-इंदौर(म. प्र.)

दिनांक १४ नवम्बर २०१४